शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

आलेख "सिक्किम की वन संपदा"-डा जयशंकर शुक्ल

आलेख "सिक्किम की वन संपदा" --डा जयशंकर शुक्ल भारत के सीमावर्ती पूर्वोत्तर हिमालयी पर्वतीय राज्य सिक्किम को उपग्रह डाटा के आधार पर भारत देश में सबसे ज्यादा हरियाली वन वाला प्रदेश माना गया है. नवीनतम साक्ष्यों के अनुसार राष्ट्रीय 21 प्रतिशत वनीकरण के मुकाबले सिक्किम का 47.3 प्रतिशत क्षेत्र वनों के ढका हुआ है. सिक्किम पूर्वोत्तर भारत का एक खूबसूरत पहाड़ी प्रदेश है, जो अपने पर्वतीय परिदृश्य,बेमिसाल वन संपदा,आकर्षक पर्यावरण, मनहर वातावरण,सुंदर वन्य जीवन,विशिष्ट नदी-झीलों और ऐतिहासिक सांस्कृतिक जीवन तथा शांतिप्रिय बौद्ध मठों के लिए पूरी दुनिया भर में चर्चित है। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, भू वैज्ञानिक और प्राकृतिक रूप से यह प्रदेश बहुत अधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हर वर्ष सिक्किम में बहुत ज्यादा संख्या में पर्यटकों का आवागमन होता रहता है। अपनी नैसर्गिक सुंदरता एवम प्राकृतिक विरासत के साथ साथ यह प्रदेश दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची पर्वतीय चोटी कंचनजंगा के लिए भी सारे विश्व में जाना जाता है। सिक्किम प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 7,096 वर्ग किलोमीटर है जिसमे लगभग सात लाख लोग निवास करते हैं।इस क्षेत्रफल में से प्रदेश में सन 2013 तक 3,359 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को अर्थात 47% क्षेत्र को वन क्षेत्र के अधीन लाया जा चुका था तथा वर्तमान पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत अतिरिक्त 1,000 हेक्टेयर क्षेत्र को वन भूमि क्षेत्र के अंतर्गत लाया जाना प्रस्तावित किया गया है, जिससे प्रदेश में कुल क्षेत्रफल के आधे से ज्यादा क्षेत्र वन भूमि क्षेत्र के अंतर्गत आ जाएगा. सामान्य तौर पर प्रदेश में तीन प्रकार के वन देखें जाते हैं। अत्यंत घने वन ,सामान्य घने वन एवं खुले वन। यह इस राज्य की पहचान है और इन तीन तरह के वनों को मिलाकर के सिक्किम भारत का सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला प्रदेश है। यूं तो यह प्रदेश भारत में क्षेत्रफल आधारित प्रदेशों की सूची में सबसे छोटे प्रदेशों में दूसरे स्थान पर है। लेकिन वन क्षेत्र के आधार पर यह भारत भर में शीर्ष स्थान पर अपने आप को बनाए हुए है । भारत में राष्ट्रीय स्तर पर वन क्षेत्र की स्थिति 21% है जिसकी तुलना में सिक्किम प्रदेश के वन भूमि क्षेत्र की स्थिति वहां के कुल क्षेत्रफल के आधे क्षेत्रफल के बराबर अर्थात 47% है। यह अपने आप में भारतीय वन क्षेत्र के मामले में एक कीर्तिमान है। प्रदेश में वन क्षेत्र के रूप में सबसे ज्यादा मात्रा सामान्य घने वनों का है जो 2161 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। इसी तरह दूसरे स्थान पर खुले वन आते हैं, जो 698 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित हैं तथा तीसरे स्थान पर अत्यंत घने वनों को माना जाता है जिनका कुल क्षेत्र 500 वर्ग किलोमीटर का है। इसी के साथ साथ सिक्किम प्रदेश में 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ऐसा है जो सामान्य पेड़ पौधों व वनस्पतियों से ढका हुआ है। इस राज्य में वनों के क्षेत्रफल वर्ष 1993 में 43.95 प्रतिशत था, जो वर्ष 2013 में बढ़कर 47.34 प्रतिशत हो गया. प्रदेश का लगभग 38 प्रतिशत क्षेत्र पार्को, जीव अभयारण्यों, जीव मंडलों के साथ साथ शासन स्तर पर संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत लाया गया है, जो देश के सभी प्रदेशों में सर्वाधिक मात्रा में है. शासन के प्रयत्न से सिक्किम प्रदेश में हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए 'सिक्किम ग्रीन मिशन', स्मृति वन, 'टेन मिनट टू अर्थ' जैसी अनेक महत्वपूर्ण एवम महत्वाकांक्षी योजनाओ की शुरूआत की गई हैं, जिनके काफी सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं. राज्य में वनों के बढ़ने से जंगली पशुओं, विलुप्त होने के कगार पर पहुंची प्रजातियों, वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं की संख्या में भी आशानुरूप अत्यधिक वृद्धि देखी गई है. राज्य के कुल 7,096 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के मुकाबले 5,841 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को वनों के अधीन अंकित किया गया है.इस तरह से आज की तारीख में प्रदेश का लगभग 82.31 प्रतिशत क्षेत्रफल वनों के अंतर्गत पाया गया है. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह संख्या मात्र 23.41 प्रतिशत क्षेत्रफल को वनों के अंतर्गत पाया गया है। सिक्किम प्रदेश में पौधरोपण को जान जन तक पहुंचने एवम जन-आंदोलन बनाने के लिए यहां शासन स्तर पर चलाए गए अभियान के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री महोदय ने वर्ष 2006 में 'स्टेट ग्रीन मिशन' नामक एक विलक्षण कार्यक्रम शुरू किया. इसके अंतर्गत समस्त बंजर अनुपयोगी एवं खाली (परती पड़ी) भूमि को समाज की सक्रिय भागीदारी एवम रचनात्मक सहयोग से हरा-भरा करके 'ग्रीन सिक्किम' के महत्वपूर्ण लक्ष्य को पूरा करने का संकल्प व्यक्त किया गया था. इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश के विभिन्न भागों में अब तक लगभग 45 लाख पौधे लगाए जा चुके हैं. शासन स्तर पर प्रदेश के नेतृत्व द्वारा जून, 2009 में एक अन्य महात्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत शुरू लिए गए कार्यक्रम 'टेन मिनट टू अर्थ' के अंतर्गतविशेष प्रयत्न शुरू किया, जिसके अंतर्गत प्रत्येक 10 मिनट के नियमित अंतराल में प्रदेश की सम्पूर्ण जनसंख्या ने अपने घरों से निकलकर 6,10,694 पौधे लगाए. सिक्किम के लोगो द्वारा बनाया गया यह एक नया विश्व कीर्तिमान था. इस पौधरोपण कार्यक्रम से प्रतिवर्ष 1,400 टन कार्बन डाई ऑक्साइड गैस को पर्यावरण से कम करने में हमे मदद मिल रही है. जिसके द्वारा हमापनी धरती को बचाने में काफी हद तक सफल हो पायेंगे। इस पौधरोपण के लिए सिक्किम के वन विभाग द्वारा वहां के नागरिकों को निःशुल्क विभिन्न किस्म के पर्यावरण उपयोगी पौधे उपलब्ध करवाए गए। अब सिक्किम प्रदेश में प्रत्येक वर्ष 25 जून को यहां के सभी छह लाख नागरिको द्वारा अपने व्यस्ततम समय में से 10 मिनट का समय निकाल कर पौधारोपण, वन एवम वन्य जीव संरक्षण तथा वन्य जीव संवर्धन जैसे कार्यो में लगाया जाता हैं. तथा इस कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न प्रजातियों के 15 लाख वातावरण हेतु उपयोगी पौधे लगाए जाते हैं. राज्य में वर्ष 2013 में 15 से 30 जून तक पर्यावरण महोत्सव मनाया गया, जिसके अंतर्गत पौधों की विभिन्न प्रजातियों के 2.66 लाख पौधे लगाए गए. यह प्रक्रिया सतत अनुकरणीय है जिससे हम पौधारोपण के साथ साथ उनके रख रखाव पर बेहतर ध्यान रख सकते हैं। सिक्किम की प्रदेश सरकार ने वहा लोगों के प्रियजनों की याद संजोए रखने एवम उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि के लिए 'स्मृति वन' योजना की शुरूआत की गई है, जिसके अंतर्गत प्रदेश के लगभग 352 हेक्टेयर क्षेत्र में कुल 40 स्मृति वनो को स्थापित किया गया हैं. राज्य में पिछले 20 सालों के दौरान विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए 800 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग किया गया, जिसके बदले में 2,000 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर पौधरोपण किया गया. वन्य संपदा के अंतर्गत आने वाले अन्य महत्वपूर्ण वनस्पति एवं प्रजातियों में यहां के फूलों की महत्वपूर्ण भूमिका है। सिक्किम राज्य अपने इन फूलों के लिए पूरे दुनिया में जाना जाता है यहां से इन फूलों का न केवल निर्यात किया जाता है बल्कि इनके माध्यम से यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने का एक महत्वपूर्ण उद्यम भी राज्य सरकार निरंतर कर रही है।सिक्किम प्रदेश में आर्किड की 400 प्रजातियां पाई जाती हैं। आर्किड निश्चित तौर पर हमारे देश की एक पहचान के रूप में स्थापित होती हुई दिख रही है। देश के अंदर यह पूर्वोत्तर क्षेत्र जिसमें सिक्किम प्रमुख है में बहुतायत रूप से पाया जाता है। सिक्किम में आर्किड की विभिन्न प्रजातियां जिसमें अलग-अलग आकार-प्रकार, रूप-रंग के आर्किड आते हैं, पाए जाते हैं। अपनी उपयोगिता महत्व एवं जन स्वीकार्यता के द्वारा यह महत्वपूर्ण रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। सिक्किम के वन्य संपदा में यहां की तितलियों का विशेष स्थान है। रंग बिरंगी तितलियां सिक्किम के वातावरण एवं पर्यावरण में अनेक तरह के रंगों को भर देती हैं उन्हें सजा देती हैं। यहां पर 600 प्रजातियों की तितलियां पाई जाती है जो जय विविधता के लिए एक प्रकार के मिसाल के रूप में देखी जा सकती हैं विश्व में तितलियों की इतनी प्रजाति संभवत कहीं और देखा जाना संभव नहीं हो सकता। तितलियों की इतनी अधिक प्रजातियां और उन्हें संरक्षित रखना हमें गर्व करने का एक अवसर प्रदान करता है जिसके लिए हम सिक्किम और सिक्किम के लोगों का हृदय से आभार व्यक्त करना चाहते हैं वास्तव में एक छोटे से राज्य ने अपने प्रयत्नों के द्वारा हमें एक आधार दिया है अनुकरण करने की राह दी है जिसके माध्यम से हम धरती को और अधिक रंगीन बना सकते हैं। यह गलियां केवल देखने में सुंदरता की वृद्धि में ही अपना योगदान नहीं दे रही हैं बल्कि जय हो विविधता के क्षेत्र में इनका योगदान अविस्मरणीय है। हमारे देश में जब हम वन्य संपदा की बात करते हैं तो हम कुछ वृक्षों और लताओं तक सीमित रह जाते हैं । यह भ्रामक और त्रुटि पूर्ण है। वन्य संपदा की बात करने पर सीधे सीधे हमारे सामने इस धरती के आभूषण के रूप में जितने भी प्राकृतिक उपादान हैं,आते हैं। वह चाहे वन हो, वन्यजीव हो, वनस्पतियां हो, लताएं हो , पक्षी हो, पशु हो, कंदरा हो, गुफा हो, नदियां झरनें या पहाड़ हों यह सब मेरे अपने मान्यता के अनुसार वन्य संपदा के अंतर्गत ही आते हैं। सिक्किम प्रदेश में 550 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं. जो अपनी विशेषता और विविधताओं के लिए पूरे भारत में अपना एक अलग स्थान रखते हैं। यह पक्षी वहां के पर्यावरण संतुलन में भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं भोजन चक्र एवं जीवन चक्र को संतुलित रखने में इन पक्षियों का योगदान किसी से भी छिपा हुआ नहीं है वास्तव में यह एक अस्तित्व के सहायक होने का आधार है सह अस्तित्व के स्थान पर एक जो दूसरे जीव के लिए उसके अस्तित्व के लिए सहयोगी होता है ना कोई रुकावट या और अवरोधक। सिक्किम राज्य के पक्षी निश्चित तौर पर अपनी ज्ञात प्रजातियों के माध्यम से राज्य के जैव विविधताओं को अत्यधिक समृद्ध करते हैं और उनका योगदान प्राकृतिक रूप से राज्य को बेहद महत्वपूर्ण बनाता है। ‌ सिक्किम राज्य में पशु पक्षियों की विविधता अन्य राज्यों के लिए इसे मिसाल के तौर पर प्रस्तुत करता है वास्तव में यह राज्य अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थितियों के आधार पर अपनी विशेषता के साथ स्वयं को सदैव प्रस्तुत रखने की कवायद में लगा हुआ है। किसी भी भूभाग में जितने भी जिओ हैं वह एक दूसरे के अस्तित्व और सहयोग के लिए जाने जाते हैं मानव भी उस भूभाग का एक जीव मात्र है जो अन्य जीवो के साथ वहां पर स्वयं को स्वयं के अस्तित्व को बनाए हुए हैं हमारा दायित्व बनता है कि हम सह अस्तित्व के बौद्ध को सबसे ऊपर रखते हुए अन्य जीवो के जीने के अधिकार का सम्मान करें यदि हम ऐसा करते हैं तो वह हमारे जीवन के लिए भी बेहद उपयोगी सिद्ध होगा। सिक्किम राज्य में बहुत सारे पशु पक्षी जिसमें जंगली भी हैं और पालतू भी हैं पाए जाते हैं जो यहां की पहचान है इसके अतिरिक्त राज्य के जंगलों में बर्फीले तेंदुए, रेड पांडा, हिमालयी भालू, कस्तूरी मृग एवं गिलहरियों की अनेकों प्रजातियां पाई जाती हैं. भारत के पूर्वोत्तर में यहां की पौधों की प्रजातियों में बांस का उत्पादन प्रमुख है । सिक्किम भी इससे अछूता नहीं है । सिक्किम प्रदेश में बांस की अनेक प्रजातियां विद्यमान हैं। बांस और बांस से बनी हुई वस्तुएं यहां की पहचान है यहां के समस्त मांगलिक कार्यों में बांस को और उसकी उपयोगिता को बड़े आदर के साथ देखा जाता है बांस यहां की मुख्य वानस्पतिक प्रजाति है जिसकी विभिन्न तरह की विविध रूप पाए जाते हैं। सिक्किम राज्य का 1,181 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बांस की पैदावार के अंतर्गत आता है. सिक्किम प्रदेश में 8 लाख 87 हजार टन बांस की नालें विद्यमान हैं, जिनमें से 7 लाख 72 हजार टन हरी तथा 1 लाख 15 हजार टन सूखी हैं. इस तरह से बात की है ना ले वहां के निवासियों के जीवन में बहुत तरह से उपयोग में आते हैं सच कहा जाए तो बिना बांस के भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों के लोगों के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती बांस के द्वारा इनके बनाए गए विभिन्न तरह की कलाकृतियां एवं वस्तु सारी दुनिया में बड़े आदर के साथ देखे जा रहे हैं और उपयोग हेतु लिए जा रहे हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत के सुदूर पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रदेश सिक्किम की पहचान यहां की अपार वन संपदायें हैं। जिनके माध्यम से यह केवल भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में जाना एवं पहचाना जाता है। सिक्किम की वन संपदा यहां की प्राकृतिक धरोहर और जैव विविधता है। इसे विशेष स्थान प्रदान करती हैं निश्चित तौर पर इन सब को लेकर के सिक्किम की अपनी अस्मिता विशेष स्थान रखती है। डा जयशंकर शुक्ल भवन संख्या-49, पथ संख्या-06, बैंक कॉलोनी, मंडोली, दिल्ली-110093

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