इतिहास के आईने
प्राचीन भारतीय बंदरगाह शहर लोथल
-डॉक्टर जयशंकर सूर्यप्रताप शुक्ल
प्राचीन भारत के गौरवशाली इतिहास में इसके बंदरगाहों का पूरे विश्व व्यवस्था में प्रमुख स्थान रहा है। भारत के समुद्र तटीय प्रदेशों में से प्रमुख गुजरात प्रदेश के तटवर्ती स्थान पर स्थित बंदरगाह अपनी सक्रियता और भव्यता के लिए सदैव प्रसिद्ध रहा है।यह आधुनिक गुजरात प्रदेश के जनपद अहमदाबाद में समुद्र के तट से निकट 'सरगवाला' गांव के पास अवस्थित है। आधुनिक भारतीय स्थितियों में सन1954-55 ई. में सुप्रसिद्ध इतिहास वेत्ता 'रंगनाथ राव' के अगुवाई में की गई पुरातात्विक खुदाई में इस जगह से समकालीन सभ्यता के महत्वपूर्ण पांच स्तर देखे गए हैं। यहाँ पर हुई खुदाई में दो अलग-अलग टीले का अस्तित्व नहीं मिले हैं, अपितु संपूर्ण बस्ती एक ही चहारदीवारी से घिरी थी जो कि विभिन्न स्तरीय छः भागों में बंटा हुआ था।
वास्तव में यह एक महान गौरवशाली सभ्यता का अवशेष है जिसे हम सैकड़ों वर्ष पुरानी सिन्धु घाटी की सभ्यता के रूप में जानते हैं। सिंधु नदी घाटी की महत्वपूर्ण सभ्यता में मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, धोलावीरा और हड़प्पा जैसे कुछ महत्वपूर्ण शहर थे, लेकिन इन सब में ‘लोथल’का अस्तित्व सबसे अलग था.
लोथल शहर तत्कालीन 'भोगावा नदी' के किनारे पर स्थित एक प्राचीन बंदरगाह शहर था, जो आज आधुनिक अहमदाबाद जनपद के धोलका तालुके के सरगवाला गांव की सीमा में स्थित पाया गया है. ‘लोथल’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘मृत मानवों’ का नगर।
आज से लगभग चार हजार वर्ष पहले यह शहर लोथल पूर्णतः अस्तित्व में आ गया था. इस आशय से यह शहर वर्षों से समकालीन शहरों में बहुत प्रसिद्ध था। आज के आधुनिक संदर्भ में इस शहर के वास्तविक स्वरूप की जानकारी हम सभी को तब मिली जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एक टीम ने वहां सर्वेक्षण हेतु भ्रमण किया।सन 1954 में अपने सर्वेक्षण में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की इस टीम ने संभावना व्यक्त की कि यहां पर कोई न कोई सभ्यता तो अवश्य ही अवस्थित रही होगी। इस संकल्पना के बाद इस जगह की विधिवत खुदाई प्रारंभ कर दी गई। भारतीय पुरातत्व की टीम द्वारा वर्षों चली खुदाई कार्य के बाद यहां बहुत सारे अवशेष मिले, जो सीधे तौर पर एक विकसित सभ्यता को प्रदर्शित करते हैं। यही कारण है कि भारतीय पुरातत्व विभाग के लिए लोथल शहर सदा से आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
वास्तव में आधुनिक काल में हड़प्पा और मोहजोदड़ो जैसे स्थल आज के भारत का हिस्सा नहीं हैं,बंटवारे के बाद यह फटे हुए हिस्से में चले गए हैं ऐसे में लोथल नगर का सिलसिलेवार और व्यवहार अध्ययन करने से हम हड़प्पा सभ्यता के कई रहस्यों से पर्दा उठा सकते है।
भारतीय पुरातत्व हॉकी टीम की खुदाई से मिले अवशेष से पता चलता हैं कि ‘लोथल’ अपने समय का कोई सामान्य नगर नहीं था. बल्कि वह अपने आप में पूर्ण रुपेण विकसित नगर था. यहां के निवासी भी समझदार रहे होंगे. यहां के पुरातात्विक उत्खनन से मिली अलग-अलग आकार-प्रकार की मुहरें हड़प्पा सभ्यता के साथ इसके सीधे संबंध की प्रामाणिक संकेत देती हैं. मुहरों के एक ओर विभिन्न पशुओं के चित्र उकेरे हुए हैं, तो उनके दूसरी ओर उनकी विशिष्ट लिपि में कुछ लिखा हुआ है, जिसे आज तक पढ़ा और समझा नहीं जा सका है.
लोथल के उत्खनन से प्राप्त मुहर्रम पर की गई लिपिकीय अंकन को, इस लिखावट को पढ़ने समझने का प्रयत्न लगातार जारी है.
ऐतिहासिक साक्ष्यों को जानने और समझने के संदर्भ में माना जा रहा है कि यदि इन लिपियों और अक्षरों को पढ़ने के प्रयत्न कामयाब रहे, तो सिंधु नदी घाटी की सभ्यता की सामाजिक, आर्थिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था के साथ साथ आर्य सभ्यता के विषय में बहुत कुछ जानना समझना संभव हो पायेगा। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आलोक में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोथल मैं हुए उत्खनन कार्य से बंदरगाह होने के अवशेष मिले हैं। यह लोथल नगर के पूर्वी छोर पर स्थित होने की ओर संकेत करता दिखाई देता है। पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त संकेतों और संदर्भों द्वारा यह प्रमाणित होता है कि यह बंदरगाह विश्व का सबसे प्राचीनतम बंदरगाह है। इससे पहले के समय मे समकालीन विश्व में इतने पुराने बंदरगाह के अवशेष कहीं से भी नहीं देखे गये हैं. यह इस बात का ज्वलंत प्रमाण है कि भारत के इस क्षेत्र से विश्व के अन्य क्षेत्रों को समुद्री मार्ग से निर्यात और आयात होते रहे हैं। इसके साथ ही साथ यहां से बहुत अधिक मात्रा में मोती बनाये जाने के प्रमाण मिलते हैं, जो घोषित करते हैं कि लोथल शहर औद्योगिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण शहर के रूप में अवश्य ही रहा होगा।
तत्कालीन शहर लोथल नगर खंभात की खाड़ी की समुद्री सीमा के समीप अवस्थित था, परंतु समुद्र के तटवर्ती इलाके इस शहर के समीप नहीं थे,जिसके कारण आवागमन में लगाए गए जहाज नगर की सीमा तक नहीं पहुँच पाते थे। इसका समाधान निकालते हुए उस समय के नीति नियंताओं द्वारा एक ऐसी व्यवस्था बनाई गई जिससे कि सरलता से औद्योगिक एवं अन्य उत्पादनों को जहाज तक पहुंचाया एवं उतारा जा सके। इस आशय की पूर्ति के लिए समुद्र से नगर तक के लिए एक लम्बी चौड़ी नहर का निर्माण किया गया, जिसके माध्यम से पानी को नगर तक पहुंचाया जाता था। वहां एक बड़े क्षेत्र में पानी को एकत्रित भी किया जाता था।
इस तरह से लोथल नगर के लोग बंदरगाह का निर्माण करने में काफी हद तक सफल रहे। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह थी कि लोथर के बंदरगाह को बनाने में ईंटों का प्रयोग किया गया था. नहर के बन जाने के उपरांत बड़ी सरलता से कोई भी जहाज अथवा नाव लोथल नगर तक आवागमन कर पाते थे।लोथर नगर के इस मानव निर्मित नहर के एक किनारे पर 12 मीटर चौड़ा प्रवेशद्वार भी बनाया गया था। यह प्रवेशद्वार लकड़ी का बना था, जो इस बंदरगाह के लिए सुरक्षा प्रणाली का काम भी करता था।
लोथल नगर के विकास एवं विस्तार के लिए तत्कालीन समुद्र तटीय नगर लोथल के निर्माण में कुल मिलाकर हर एक उस चीज की व्यवस्था की गयी थी, जिससे किसी भी प्रकार की स्थिति का सामना किया जा सके। विभिन्न तरह की उपयोग में लाई जाने वाली तकनीक का यह अद्भुत प्रयोग इस बात को प्रदर्शित करता है कि उस समय के लोग विज्ञान एवं तकनीकी में कितने योग्य रहे होंगे! लोथल नगर में बंदरगाह के साथ पास में ही सामान को सुरक्षित रखने एवं आवागमन की सुविधा के लिए एक गोदाम भी बनाया गया था। इसमें आयात-निर्यात की वस्तुएं काफी अधिक मात्रा में सुरक्षित एवं संरक्षित की जाती थीं। साथ ही साथ इस बात के पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं कि यहां करीब पांच नाव हमेशा आवागमन की सुविधा के लिए मौजूद रहती थी, ताकि सामान को समय पर जहाज तक पहुंचाया एवं वहां से लाया जा सके जा सके.
अपनी भव्यता एवं सुरक्षा संरक्षा के बावजूद लोथल नगर उस रूप में हमारे सामने नहीं आ पाता जिस रूप में इसकी परिकल्पना एवं निर्माण किया गया था। लोथल की तबाही के कई कारण बताये जा सकते हैं। इस कारणों में सबसे ज्यादा मुख्य कारण बाढ़ एवं बारिस को माना जा सकता है। उत्खनन से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर ऐसा माना जाता है कि सन 1900 ई.पू. के आसपास लोथल नगर में एक तेज विनाशकारी बाढ़ आई थी, जिसने इस नगर की भव्यता को विनाश कर दिया। पुरातात्विक खुदाई के दौरान विभिन्न स्तरीय भूमि से मिली अलग-अलग मिट्टी की परतें इस बात को तथ्यों एवं साक्ष्यों द्वारा प्रमाणित करती हैं। लोथल नगरकी तबाही का दूसरा सबसे बड़ा कारण यहां बनाये गये बंदरगाह को ही माना जा सकता है। साक्ष्यों एवं तथ्यों के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि यहां बनाए गए बंदरगाह और उस की सुविधा के लिए बनाई गई नहर के कारण भारी मात्रा में पानी आ गया था, जिसे समय एवं सुरक्षा से नियंत्रित नहीं किया जा सका।जिसका परिणाम यह हुआ कि पूरा नगर पानी-पानी हो गया।
भूमि के खुदाई के विभिन्न स्तरों का निरीक्षण एवं तथ्य निरूपण करने से यह पता चलता है कि कुछ समय बाद में इस नगर को बसाने तथा बनाने का प्रयास किया गया जिसके अनुसार लोथल नगर को नयी परिकल्पना के साथ कुछ सालों बाद फिर से बसाने की लगातार कोशिश की गई, पर वह पहले जैसा नहीं बस और बन पाया था, जैसा कि उसको बनाने वाले लोगों की अपनी मंशा थी। बाद में कुछ वक्त बाद ही वह पुराने कारणों से अथवा कुछ अज्ञात कारणों से फिर से नष्ट हो गया.
आज भी लोथल नगर में बंदरगाह के अवशेष हमें काफी अच्छी स्थिति में मिलते हैं जो देखने योग्य भी हैं। इसके साथ ही साथ मोती और मोती की कलाकृतियों वाला म्यूजियम भी यहां बनाया गया है। इन सब का वायदों के साथ आज के देखे जाने वाले लोथल नगर के रूप में बस नहर का कोई अस्तित्व नहीं प्राप्त होता है. माना जा रहा है कि एक लम्बा वक्त बीत जाने के कारण और बदले भौगोलिक स्थितियों की वजह से नहर खत्म हो गई होगी।
--------/----डॉ जयशंकर शुक्ल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें