शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

एकांकी बच्चों की पार्टी -डॉ जयशंकर शुक्ल

एकांकी बच्चों की पार्टी -डॉ जयशंकर शुक्ल मंच पर ठीक सामने चार कुर्सियां एवं एक मेज लगी है। दाएं तरफ एक पर्दा पड़ा हुआ है जिसके पीछे एक दरवाजा है। बाई ओर गैलरी का मुख्य द्वार दिखाई देता है जिसमें कोई पर्दा नहीं है। कमरा सजा हुआ है, दीवार पर एक तस्वीर और एक रंगबिरंगा कैलेंडर भी लगा है। कमरे को देखकर ऐसा लगता है मानो किसी अतिथि के लिए साफ-सफाई कर तैयार किया गया हो। सीमा दीदी एक कुर्सी पर बैठी हुई कुछ लिख रही है। रीमा और मंजू एक कपड़े से कुर्सियों को पोंछ रहे हैं। सीमा दीदी : अरे तुम दोनों कब तक कुर्सी और मेज साफ करती रहोगी जब तक उसका पेंट उतर कर हाथ में नहीं आ जाता तब तक? मंजू: दीदी तुम तो अपनी लिस्ट बनाओ तुम्हें क्या! हम तो अपनी समधिन के स्वागत की तैयारी कर रहे हैं। रीमा : (हंसकर) जाने कब आएंगी हमारी समधन! दीदी: (गैलरी की ओर देखते हुए) आती ही होंगी ,टाइम तो हो गया है क्या पता कैसे देर हो गई? रीमा : (मुस्कराकर) दीदी लगता है हमारे लिए मिठाईयां ला रही होंगी तभी लेट हो गई शायद! दीदी हंसकर चुप रह जाती है दीदी : रीमा, तूने गुड्डे को अच्छे से धो कर छत पर धूप में सूखने के लिए तो रख दिया है न? रीमा : हाँ – हाँ, दीदी मैंने तभी धो दिया था जब आपने कहा था बस अभी सूखने के लिए रख कर आई हूं। आप याद दिला देना तो छत से उठा भी लाऊंगी। मंजू : हाँ, दीदी ,कहीं भूल गए तो धूप में पड़ा पड़ा काला ना हो जाए हमारा गुड्डा। रीमा :अरे नहीं, वैसे सूखकर तो बड़ा अच्छा लगेगा हमारा गुड्डा ।गैलरी की ओर देख कर लो दीदी वह लोग तो आ गए। सभी दरवाजे की ओर देखते हैं इंदु और राजू सब को हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं। राजू दीदी से हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है पर दीदी इंदु का हाथ पकड़ लेती है और जोर से हिलाती है। राजू खिसियाकर कमरे में इधर-उधर देखने लगता है। दीदी सबको ले जाकर कुर्सियों पर बैठा देती है। इंदु: अरे! राजू, यहां आ जा न! राजू: मुझे नहीं बैठना वहां, मैं कैलेंडर देख रहा हूं। मंजू : हाँ- हाँ, कल सोमवार जो है होमवर्क नहीं किया होगा इसलिए सोच रहा होगा कि कल भी छुट्टी हो जाए तो कितना अच्छा हो। रीमा: मंजू ,तू भी न पागल है। उसे तारीख देखना आता हो तो देखी भी ,वह तो बस तस्वीर देख रहा है। सब खिलखिला कर हंसते हैं। राजू : (गुस्से में) सब को अपने जैसा समझा है क्या तूने? तुझसे ज्यादा काम करके ले जाता हूं। मैं बहुत होशियार हूं, हाँ! इंदु: (राजू का हाथ पकड़ कर खींच कर उसे बैठाती है) चल बैठ जा यहां अब चुपचाप। बहुत बकबक करता है । राजू खिसियाकर बैठ जाता है। इंदु: हाँ, तो दीदी आप कितने बाराती लाएंगे? दीदी :यही तो मैं भी सोच रही थी। देखो ,वही लिस्ट बना रही थी। सोच तो रही हूं कि एक आदर्श विवाह करूं पर फिर गुड्डे के दोस्त बुरा मानेंगे। ज्यादा बाराती ले जाऊँ , तो तुम्हें परेशानी होगी। समझ नहीं आ रहा क्या करूं? मंजू : कुछ भी हो दीदी, कम से कम दस बाराती तो हो ही जाएंगे। इंदु : दस ! पर दीदी हमारे घर में तो एक ही टीसेट है और हमारे कुछ घराती भी तो होंगे। रीमा : तो क्या हुआ गर्मी का मौसम है, कुछ लोगों को शरबत या कोल्ड ड्रिंक पिला देना। मंजू: भाई ,मैं तो कोल्ड ड्रिंक ही पियूंगी। रीमा: पर मैं तो चाय पीयूँगी, वह भी तेज चीनी वाली। मंजू : और दीदी छोले भटूरे तो नाथूराम से ही आने चाहिए। हमारे गुड्डे को बहुत पसंद है न। रीमा: दीदी दही भल्ले भी आने चाहिए। मंजू: वह क्यों? रीमा: (चुपके से धीमे स्वर में) क्योंकि वो मुझे पसंद है। मंजू: अरे दीदी ! गर्मियों में तो आइसक्रीम के बिना मजा ही नहीं आता! इंदु :अरे हाँ !आज ही मम्मी ने खीर बनाई थी। सब हाथ चाटते रह गए। मंजू: ओहो ! खीर का क्या है रोज बनती है हमारे यहां पर कोई खाता भी नहीं। रीमा: दीदी, आइसक्रीम भी आएगी वह भी चॉकलेट वाली। मंजू: नहीं वनिला आइसक्रीम आएगी। मैं तो दो कप खाऊंगी। राजू: हाँ – हाँ, क्यों नहीं छ कप खाइयो तू तो ।हमारे यहां तो आइसक्रीम की फैक्ट्री लगी है न। इंदु: (राजू की तरफ आंख दिखाते हुए) ओहो ! राजू तू इतना क्यों बोलता है। रीमा : इंदु को बीच में काटते हुए हाँ ,राजू तू इतना क्यों बोलता है? पता है कल ही मम्मी पापा से कह रही थी कि बेटी वालों को झुक कर चलना चाहिए, हाँ । राजू: अच्छा! तो मैं तो बेटा हूं। सब हंस पड़ते हैं। इंदु: अरे दीदी! इस बुद्धू की बात का बुरा मत मानना ये तो कुछ भी बोलता रहता है। राजू :अच्छा और खुद तो तू बड़ी समझदार है। रोज घर पर जब मम्मी से डांट पड़ती है तो कितना मजा आता है? मंजू: पलंग तो बनवा लिया है न और अलमारी वह भी ले ली है न। इंदु: (कुछ सोचते हुए) पलंग और अलमारी का तो ख्याल ही नहीं था। दीदी: हाँ, भाई पलंग तो होना ही चाहिए। गुड़िया - गुड्डे को आखिर सुलाएंगे कहां? और अलमारी भी होनी चाहिए ,उनके कपड़े कहां रखेंगे? इंदु: ठीक है दीदी, पापा को कह दूंगी , बढ़ी से वो भी बनवा देंगे। दीदी: हाँ, इंदु बिस्तर सर्दियों के हो कहीं गर्मी के ही दे दो। मंजू: अरे दीदी मच्छरदानी क्या हम लेकर आएंगे? राजू: अरे नहीं मच्छर मारने के लिए गुड नाइट भी साथ में दे देंगे आखिर गुड़िया गुड्डे को मच्छर ना काटे और साथ ही कॉकरोच मारने के लिए एक डंडा भी। मंजू: राजू के बच्चे! तू ज्यादा मत बोला कर। दीदी : इंदु, मिठाइयां अच्छे घी में ही बनवाना। वो क्या है ना, घटिया घी से हमारे गुड्डे का गला खराब हो जाता है। दीदी: और फोटो भी खिंचेंगे। राजू: वो हमारे बड़े भैया खींच देंगे। मंजू: नहीं हमारे यहां शादी ब्याह में फोटो खींचने के लिए फोटोग्राफर ही बुलाया जाता है। इंदु: दीदी बाहर से फोटोग्राफर बुलवाने में बहुत खर्च होगा। हमारी गुल्लक में तो जितने पैसे हैं उन्हीं में काम करना है। हम इतना सब कैसे करेंगे? रीमा : अच्छा तो हमारा गुड्डा तुम्हारी गुड़िया से शादी करने ऐसे ही बारात लेकर पहुंच जाएगा ? मंजू: अरे दीदी! गुड्डा आएगा किस तरह? दीदी :हम लोग उसे कार में बिठाकर ले जाएंगे। रीमा: (मंजू की तरफ इशारा करते हुए) फिर तो कार को भी फूलों से सजाना होगा। इंदु : पर दीदी यही तक तो आना है, पास ही तो है हमारा घर इसमें कार से क्या आना आप लोग नाचते गाते बारात ले आना हमारे घर। रीमा मंजू दोनों इंदू को घूरने लगे। इंदु: ठीक है मैं अपने घर से ही फूल भी तोड़ लूंगी। राजू, तू कार को फूलों से सजा देना। राजू: मैं नहीं करूंगा यह सब। इंदु तुम चुपचाप इनकी बातें सुनती जा रही हो। मैं तो 2 दिन बाद ही अपनी गुड़िया को ले जाऊंगा यहां से। मंजू :दो दिन बाद क्यों, तू फॉरेन लेजा कोई नहीं रोकेगा। दीदी: (उछलकर) अरे इंदु! एक बात तो बता? इंदु: (उत्सुकता से) क्या दीदी? दीदी :तेरी गुड़िया का रंग भी तेरी तरह साँवला हुआ तो क्या होगा? हमारे घर में तो कोई लड़की सांवली नहीं है। मंजू और रीमा आपस में खुसफुसा कर: और अब तो गुड्डा भी धोकर चमका दिया है हमने। इंदु: (दुखी मन से) पर दीदी मेरी गुड़िया तो बहुत गोरी है। तुम्हारे गुड्डे से भी ज्यादा, मैंने आज ही उसे नए कपड़े पहन आए हैं। राजू: (बीच में बोलते हुए) तूने पहनाए है? या मैंने? और यह सब तुम क्या सुन रही हो? इतना सारा सामान पलंग, अलमारी, फूलों से सजी कार, फोटोग्राफर, गुड़िया का सांवला रंग! तुमने तो कहा था खेल खेलना है ।गर्मियों की छुट्टियां है चलो गुड्डे गुड़िया की शादी का खेल खेला जाए। पार्टी करेंगे, पकवान खाएँगे, नाचेंगे गाएंगे मजा आएगा, यहां तो तुम्हारे साँवले रंग का मजाक बनाया जा रहा है। इंदु: तू चुप कर राजू तुझे कुछ नहीं पता। शादी - ब्याह में यह सब देना पड़ता है और सुनना भी पड़ता है । राजू: अच्छा मैं बेवकूफ नहीं हूं, इसे दहेज मांगना कहते हैं। जब से हम आए हैं तब से यह तीनों अपनी मांगों की लिस्ट बता रही हैं और तुम भी मानती जा रही हो। भूल गई, मैडम ने क्या कहा था, “दहेज लेना और देना दोनों गलत है” और तुम्हें साँवले रंग का ताना देने वाली यह कौन होती हैं? मैं तो यह सब नहीं सुन सकता, गलत है ये! रीमा: अरे! देखो तो, बढ़ा आया पाठ पढ़ाने। दहेज कब मांगा, हमने नाम भी लिया हो तो बताओ और कौन सा ताना मार दिया ? बस यही न कि हमारे गुड्डे के लिए गोरी गुड़िया चाहिए। इंदु: दीदी कह तो मेरा भाई सही रहा है। हमारी तो सिर्फ पार्टी में खाने - पीने ,नाचने - गाने की बात हुई थी, फिर यह पलंग, अलमारी, बिस्तर यह सब तो बेकार की मांग है। मंजू: लो सुन लो दीदी, मुँह बनाते हुए। राजू: हां, रही बात सोने की तो जहां तुम्हारा गुड्डा सोए वही गुड़िया को सुला लेना, जहां गुड्डे के कपड़े रखती हो वहीं गुड़िया के रख लेना, यह भी तो हो सकता है ना। तुम्हारी यह फालतू की मांगे ही दहेज कहलाती है । इंदु: दीदी, सच कहूं तो हमारी गुल्लक में तो इतने पैसे भी नहीं है। राजू :हमारी गुल्लक? मैं ना देने वाला इन लालची लोगों के लिए एक भी पैसा । इंदु :राजू ,अब अगर तु बीच में बोला तो मैं मारूंगी तुझे! राजू: ! मुझे मारेगी , वह भी इन लालची लोगों के । राजू इंदु की चोटी खींचता है, इंदु उसे एक थप्पड़ लगा देती है ।राजू रोता हुआ, पैर पीटते हुए दरवाजे के पास जाकर बैठ जाता है। सब लोग एकदम चुप हो जाते हैं। राजू: (बड़बड़ाता है) बड़ी आई गुड़िया की शादी करने, मेरे पैसे खर्च करवाकर मुझे ही मारने चली है। मैं नहीं दूंगा अपनी गुड़िया इन लालची दहेज मांगने वालों को। तू घर तो चल पापा से पिटाई करवाऊंगा तेरी। इंदु: दीदी, तुम इसकी परवाह मत करो, इसका तो दिमाग खराब है। राजू: दिमाग मेरा नहीं तेरा खराब है ।आज तू घर चल पापा से तेरा दिमाग ठीक करवाता हूं । दीदी: ठीक है इंदु, तुम यह सब बातें कहीं नोट कर लो नहीं तो भूल जाओगी ।पलंग वाली, अलमारी वाली, आइसक्रीम वाली ,फोटो वाली………. रीमा : हाँ, नहीं तो हमारे गुड्डे को गुड़िया की कोई कमी नहीं है। वैसे पिछली गली की सीमा दीदी तो इससे भी ज्यादा देने को तैयार है हमारे गुड्डे को। दीदी: (आंखें दिखाते हुए) अब बस भी करो तुम दोनों। इंदु: हाय दीदी !यह तो बहुत सारी चीजें हो गई। यह सब मैं अकेले कैसे करूंगी? मेरी गुल्लक में तो इतने पैसे भी नहीं। दीदी: शादी में तो पैसे खर्च होते ही हैं ,किसी और से भी तो ले सकती हो और राजू भी तो है। राजू: अरे वाह !लेने के नाम पर कितनी जल्दी याद आ गया मैं, (मुंह बनाते हुए)राजू भी तो ! मैं तो एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगा मेरी बला , चाहे कुछ भी हो जाए। इंदु: जा - जा तुझसे मांग कौन रहा है? मैं तो तुझसे मांगू ही नहीं। ( धीरे से) देखो दीदी इतना सब तो मैं अकेले नहीं कर सकती। क्यों ना आप ही थोड़ी मदद कर दो? आखिर शादी आपकी गुड्डे की भी तो है और फिर हम अपनी गुड़िया भी तो आपको ही दे रहे हैं न। आप एक बार और सोच लेना, अब मैं चलती हूं। उठते हुई राजू को चलने का इशारा करती है। मंजू: ( मुंह बनाते हुए) कुछ भी हो दीदी हमारे गुड्डे की शादी तो शानदार होनी चाहिए, ये कोई ऐसी वैसी बात तो है नहीं। तभी रीमा भागती हुई अंदर आती है। रीमा: दीदी ,गजब हो गया! सब लोग (एक साथ) क्या हुआ? रीमा: गुड्डा तो छत से नीचे गिर गया। दीदी: अरे! तू जा उठा ला न जाकर। रीमा: दीदी, वो वो दीदी दीदी: वो वो क्या लगा रखा है? जा भाग, जा कर उठा ले गुड्डे को जा न ! रीमा: वो नीचे कूड़े वाली गाड़ी खड़ी थी , गुड्डा उसमें गिर गया और गाड़ी वाला न जाने कहां चला गया। दीदी: ( उठकर बाहर भागते हुए) हाय! मेरा गुड्डा! रीमा मंजू दोनों दीदी के पीछे भागते हैं। इंदु और राजू दोनों हक्के - बक्के से एक दूसरे की तरफ देखते रह जाते हैं , फिर दोनों हंस पड़ते हैं और हाथ मिलाते हैं। पर्दा गिर जाता है।।

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