रविवार, 20 फ़रवरी 2022

साक्षात्कार"कवि और संवेदनशीलता एक दूसरे के पर्याय"माहेश्वर प्रसाद सिंह से डॉ जयशंकर शुक्ल साक्षात्कार

साक्षात्कार

"कवि और संवेदनशीलता एक दूसरे के पर्याय"

माहेश्वर प्रसाद सिंह से  डॉ जयशंकर शुक्ल साक्षात्कार


प्रश्न 1: महेश्वर प्रसाद सिंह जी, साहित्य में आपका आगमन कविता से हुआ और अब आप यात्रा संस्मरण लिख रहे हैं. इसका क्या कारण है?

जी। सर्वप्रथम तो मैं आप का स्वागत करता हूं और आप को धन्यवाद देता हूं कि इस व्यस्तता भरी जिंदगी से कुछ पल निकाल कर मेरे घर तक पहुंच पाए। जहां तक पहले कविता लिखने का सवाल है तो मैं आप को यह बताना चाहूंगा कि साहित्य में मेरी शुरुआत ही कहानी से हुई थी। विश्वविद्यालय छोड़ कर जैसे ही मैं नौकरी में आया था और यहां आकर मुझे खुद में खालीपन सा लग रहा था तब मैने कहानी लिखनी शुरू कर दी थी और दो चार कहानी लिखी भी थी और वो स्थानीय अखबारों में तब प्रकाशित हुई थी जिसे मैंने अब तक संजो कर रखा हुआ था। सच तो यह है कि कविता की शुरुआत ही बहुत देर से हुई परंतु लोगों के बीच में कविता पहले आई और कहानी पीछे छूट गई।


प्रश्न 2: मेरी जानकारी में कवि होना संवेदनशील होने का पर्याय है. आप मूलतः कवि हैं, लेखन की विधाये बताएं?

जी। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कवि और संवेदनशीलता एक दूसरे के पर्याय हैं। जब तक कोई व्यक्ति संवेदनशील नहीं होगा तब तक वह कोई कविता भला कैसे रच पाएगा! कवि का प्रथम गुण संवेदनशीलता ही है। जी। मैने गीत, गजल, कविताएं, मुक्तक आदि लिखे हैं।


प्रश्न 3 जब आप निबंध या संस्मरण लिखते हैं तो भावुकता और तार्किकता आती है. आप दोनों में सम्बन्ध कैसे बना पाते हैं?

बिल्कुल वाजिब प्रश्न है आप का। परंतु मैने पाया है कि कहानी या संस्मरण लिखते वक्त शुरुआत तो तार्किकता से होती जरूर है परंतु बीच बीच में पात्रों की मनस्थिति पर विचार करते हुए भावुकता या संवेदनशीलता भी स्वयं चल कर आ जाती है। लिखते वक्त तो मैं लिख जाता हूं परंतु जब मैं अपनी ही रचना को धारा प्रवाह से पढ़ता हूं तब कभी कभी मेरी आंखें नम हो जाती हैं और कुछ अश्रु बिंदु ढलक आते हैं।


प्रश्न 4: लेखन की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली? आपने लेखन को क्यों चुना? 

सर। अब मैं क्या बताऊं आप को! सच तो यह है कि मैंने लेखन को चुना ही नहीं। मुझे लगता है लेखन ने मुझे चुन लिया है। लेकिन कभी कभी दूसरों की रचना पढ़ कर, समझ कर ऐसा जरूर लगता था कि मैं भी प्रयास करता तो कुछ लिख सकता था। पठन पाठन और मनन से ही विचार बनता है और जब उसे लिपिबद्ध कर देते हैं वह रचना बन जाती है, वही लेखन कहलाता है।


प्रश्न 5 विषय के लिए आप विधा का चयन कैसे करते हैं? 

जी। एक तो यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। किस वक्त कैसा मूड होता है और दूसरे किसी की रचना पढ़ते या सुनते वक्त स्वतः मन के अंदर विचार जागृत होने लगते हैं। कोई न कोई रचना चल पड़ती है।



प्रश्न 6वो कौन से कारण हैं जिन्होंने आपको लेखन की ओर प्रेरित किया?

सर। इसके कोई ठोस कारण तो दिखाई नहीं पड़ता। न मैने कभी किसी से प्रेम किया, नहीं कोई धोखा खाया, नहीं मेरा कभी दिल ही टूटा। हालांकि प्रसाद जी कहते हैं, 

वियोगी  होगा  पहला  कवि

आह! से  उपजा  होगा गान

उमड़ कर आंखों से चुपचाप

बही होगी कविता अनजान।

परंतु मैं वियोगी नहीं हूं। हां, एक बात है जो मैं यहां बताना जरूर चाहूंगा। लोग फिल्म देखने जाते हैं मनोरंजन के लिए, खुश होने के लिए परंतु फिल्मों में कभी कोई करुण दृश्य आता तो मैं रोता रहता। मेरी आंखों से आंसू अनायास चल पड़ते हैं और दो दिन तक मेरा सिर भारी रहता है। मैं हॉस्पिटल में लोगों को कराहते, रोते नहीं देख सकता हूं। कुछ भी पढ़ता या देखता हूं और अगर कहीं कोई ऐसी बात हुई तो मुझे बर्दाश्त नहीं होता है। यह स्थिति आज भी बनी हुई है। मैं किसी को दुख में नहीं देख सकता परंतु साधनहीन होने के कारण उन्हें कोई मदद भी कर पाता हूं। इसका अफसोस रहता है।


प्रश्न 7: अलख जी, लिखकर आपको कैसा महसूस होता है?

जब तक कोई रचना प्रक्रिया में होती है, और जब तक वह पूरी नहीं हो जाती है तब तक मन में छटपटाहट रहती है। किसी और काम में मन नहीं लगता है। लेकिन जैसे ही वह पूरी हो जाती है वैसे ही मन को बहुत शांति मिलती है, मन सुकून मिलता है और लगता है कुछ काम हुआ। कुछ और आगे कर सकता हूं।


प्रश्न 8  क्या आप अपनी सारी बातों को कागज़ पर उतार पाते हैं? यदि हाँ तो कितनी और यदि नहीं तो क्यों नहीं?

जी। विषय से संबंधित जितनी भी बातें हो सकती हैं और जहां तक लिखते वक्त सोच पाता हूं वो तो लिख ही देता हूं। हां, बाद में पढ़ने के बाद कभी कभी ऐसा लगता है कहीं कुछ अधूरा रह गया है। परंतु ऐसे मौके कम ही आते हैं। एक बार लिख देने के बाद मुझे उसमें बहुत ही मामूली संशोधन की जरूरत महसूस होती है। कोई आमूल चूल परिवर्तन की जरूरत नहीं दिखती है।


प्रश्न 9: आपने कब महसूस किया कि आपमें लिखने की क्षमता है 

सर। ऐसा मैने कभी नहीं सोचा कि मैं क्षमतावान हूं। लेकिन विचारों की अभिव्यक्ति को कागज पर उतारते हुए मुझे अच्छा लगा और इसी तरह लिखते लिखते मुझमें लिखने की क्षमता आई है और जितना लिखता हूं उतना ही मुझे लगता है कि मैं कुछ और लिख सकता हूं।


प्रश्न 10 यह कैसे प्रमाणित हुआ की आपका लेखन मानक के करीब है?

सर। कोई भी व्यक्ति अपनी रचना को मानक के करीब खुद कैसे पा सकता 

है! यह काम तो पाठक और समीक्षक का है। हां, रचनाकार अपनी भरपूर कोशिश जरूर करता है कि उसकी रचना कहीं से अपूर्ण न दिखे।

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