अपने अपने घोसले ,
विहग गए नभ फाँद .
सिंदूरी सपने लिए ,
मिला रात से चाँद .|१|
चंदा की मनुहार पर ,
रजनी हुई निसार .
उधर विरह मे लुट गया,
चकवी का संसार .|२|
चंदा ऐसा लग रहा ,
ज्यों मुख ज्योति अपार .
तारों के गहने पहन ,
रात करे अभिसार .|३|
खुले गगन की राह मे ,
बाज खड़ा मुस्तैद ,
त्रस्त पखेरू माँगता ,
फिर पिंजरे की कैद .|४|
© डॉ जयशंकर शुक्ल