रविवार, 20 फ़रवरी 2022
आलेख “देवोत्थानी-एकादशी” -डॉ जयशंकर शुक्ल
आलेख “देवोत्थानी-एकादशी” -डॉ जयशंकर शुक्ल
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी
(देवोत्थानी एकादशी) का पावन पर्व मनाया जाता है। देवउठनी ग्यारस इस बार रविवार, 14 नवंबर को मनाई जाएगी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं. चार माह की इस अवधि को चतुर्मास कहते हैं. देवउठनी ग्यारस के दिन ही चतुर्मास का अंत हो जाता है और शुभ काम प्रारंभ किए जाते हैं.
स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम (भगवान विष्णु) के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है. हर साल कार्तिक मास की एकादशी को भक्त और व्रती प्रतीकात्मक रूप से तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह करवाती हैं. इस बार 14 नवंबर को भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह होगा. उसके बाद ही हिंदू धर्म के अनुयायी विवाह आदि शुभ कार्य प्रारंभ कर सकते हैं.
भगवान शालिग्राम ओर माता तुलसी के विवाह के पीछे की एक प्रचलित कहानी है. दरअसल, शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत सती थी. शंखचूड़ को परास्त करने के लिए वृंदा के सतीत्व को भंग करना जरूरी था. माना जाता है कि भगवान विष्णु ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और उसके बाद भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध कर दिया. इस छल के लिए वृंदा ने भगवान विष्णु को शिला रूप में परिवर्तित होने का शाप दे दिया. उसके बाद भगवान विष्णु शिला रूप में तब्दील हो गए और उन्हें शालिग्राम कहा जाने लगा.अगले जन्म में वृंदा ने तुलसी के रूप में जन्म लिया था. भगवान विष्णु ने वृंदा को आशीर्वाद दिया कि बिना तुलसी दल के उनकी पूजा कभी संपूर्ण नहीं होगी.
भगवान शिव के विग्रह के रूप में शिवलिंग की पूजा होती है, उसी तरह भगवान विष्णु के विग्रह के रूप में शालिग्राम की पूजा की जाती है. नेपाल के गण्डकी नदी के तल में पाया जाने वाला गोल काले रंग के पत्थर को शालिग्राम कहते हैं. शालिग्राम में एक छिद्र होता है और उस पर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं.
श्रीमद देवी भागवत के अनुसार, कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करने से 10,000 गायों के दान का फल प्राप्त होता है. वहीं शालिग्राम का नित्य पूजन करने से भाग्य बदल जाता है।तुलसीदल, शंख और शिवलिंग के साथ जिस घर में शालिग्राम होता है, वहां पर माता लक्ष्मी का निवास होता है यानी वह घर सुखी-संपन्न होता है.कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी का व्रत किया जाता है।
इस बार यह शुभ तिथि 14 नवंबर दिन रविवार को मनाया जाएगा। एकादशी के व्रत को व्रतराज की उपाधी दी गई है क्योंकि यह सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ है और इससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चतुर्मास की निद्रा से जागते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।
भगवान के जागने से सृष्टि के तमान सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है। इस दिन भगवान विष्णु के जागने से देवतागण भी व्रत रखकर पूजन करने से कन्या दान के बराबर मिलता है फल। देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन तुलसी विवाह के साथ मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
मान्यता है कि जो व्यक्ति कन्या सुख से वंचित रहता है, उसको इस दिन तुलसी विवाह जरूर करना चाहिए क्योंकि इससे कन्या दान के बराबर फल मिलता है। इस वर्ष देव उठनी एकादशी पर कई बेहद शुभ संयोग बन रहे हैं।
इस वर्ष देव उठनी एकदाशी 14 नवंबर को रहेगी। एकादशी का आरंभ 14 नवंबर की मध्यरात्रि 05 बजकर 448 मिनट से हो रहा है और समापन 15 नवंबर सुबह 06 बजकर 39 मिनट पर हो रहा है। इसके बाद द्वादशी तिथि का आरंभ हो जाएगा, जो 16 नवंबर की सुबह 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। ऐसे में एकादशी का पूरे दिन 14 नवंबर को रहेगी।एक व्रत से कई लाभ
इस एकादशी का पारण 15 नवंबर की सुबह 10 बजे तक किया जा सकता है। एकदाशी का व्रत करने वाले द्वादशी तिथि को भी व्रत के कुछ नियमों का पालन करना होता है, जिनमें एक नियम यह भी है कि व्रती को द्वादशी के दिन सोना नहीं चाहिए। अगर आपको नींद आ रही है तो सिरहाने के पास एक तुलसी दल रख लें।
मोक्ष के साथ धन लक्ष्मी की कामना करने वाले देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन दिवाली की तरह घर की साफ-सफाई करनी चाहिए और इन शुभ योगों के बीच पूरी रात लक्ष्मी नारायण की पूजा करनी चाहिए और अखंड दीपक जलाना चाहिए। दिवाली की तरह इस दिन भी घर के आसपास दीपक जलाना चाहिए।
देवउठनी ग्यारस के दिन व्रती प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत और पूजा का संकल्प लें. उसके बाद पूजा स्थल पर बैठकर भगवान विष्णु के चरणों में धूप, दीप, नैवेद्य, फल, फूल आदि अर्पित करें. देवउठनी ग्यारस पर जरुर करें ये काम
1. देवउठनी ग्यारस के दिन अपने घर में दीपक जरुर जलाएं। क्योंकि देवउठनी ग्यारस के दिन भगवान विष्णु जागते हैं, इसलिये सभी देवता भगवान विष्णु का दीपक जलाकर स्वागत करते हैं।
2. देवउठनी ग्यारस के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम जी से जरुर करवाना चाहिए। कहा जाता है कि इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
3. देवउठनी ग्यारस के दिन सूर्योदय से पहले उठें और विष्णु जी की पूजा करें। वहीं इस दिन रात के समय जागरण कर श्री हरि का कीर्तन करें।
4. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते समय उन्हें तुलसी दल जरुर अर्पित करें। क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी दल बहुत प्रिय है।
5. देवउठनी ग्यारस के दिन तुलसी नामाष्टक का पाठ करना अच्छा माना जाता है। खासकर उनसे लिये जिनकिी संतान नहीं है।
6. देवउठनी ग्यारस के दिन व्यक्ति को निर्जल व्रत करना चाहिए। अगर निर्जला व्रत रखना संभव नहीं है तो एक समय भोजन कर व्रत रखें।
7. ग्यारस के व्रत में नमक का सेवन ना करें, अगर संभव हो सके तो एकादशी के दिन फलाहार के बाद व्रत का पारण करें।
8. देवउठनी ग्यारस के दिन पूजा करते समय भगवान विष्णु के मंत्रों का ज्यादा जप करें। भगवान विष्णु अपने भक्तों को विशेष आर्शीवाद प्रदान करते हैं।
9. देवउठनी ग्यारस के दिन भगवान विष्णु को जगाने के लिए घंटा बजाया जाता है। इसलिए एकादशी के दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को पूजा के बाद घंटा बाकर विष्णु जी को जगाना चाहिए।
10. देवउठनी एकादशी पर गाय को हरा चारा का भोजन कराएं। इसके साथ ही ब्राह्मण को दान-दक्षिणा जरुर दें।
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