अपनों के संगम में ,
नेह का उजास है .
मन में उद्गारों का ,
दहका पलास है .
साँसों के सरगम पर ,
भौरों का ज्वार है .
यौवन के आँगन में ,
खिलती कचनार है .
तन में उफनती सी ,
नदी का हुलास है .
धरती के बिछौने पर ,
सोया मृगछौना है .
उमगे सुंदरवन में ,
सुरभित हर कोना है .
सुध-बुध के खोने में ,
मकरन्दी आस है .
धरती पर बिछी हुई ,
बहकी चंदनिया है .
तारों की छेड़छाड़ ,
करती रंगरलियाँ हैं .
चंपा के फूल खिले ,
भौंरा उदास है।
आँखों की शोभा ज्यों ,
कटी हुई अमिया है .
नाक नक्स सुतवा सी ,
कहती पैजनिया है .
लाज के लिफ़ाफ़े में ,
तन-मन की प्यास है।
नेह का उजास है .
मन में उद्गारों का ,
दहका पलास है .
साँसों के सरगम पर ,
भौरों का ज्वार है .
यौवन के आँगन में ,
खिलती कचनार है .
तन में उफनती सी ,
नदी का हुलास है .
धरती के बिछौने पर ,
सोया मृगछौना है .
उमगे सुंदरवन में ,
सुरभित हर कोना है .
सुध-बुध के खोने में ,
मकरन्दी आस है .
धरती पर बिछी हुई ,
बहकी चंदनिया है .
तारों की छेड़छाड़ ,
करती रंगरलियाँ हैं .
चंपा के फूल खिले ,
भौंरा उदास है।
आँखों की शोभा ज्यों ,
कटी हुई अमिया है .
नाक नक्स सुतवा सी ,
कहती पैजनिया है .
लाज के लिफ़ाफ़े में ,
तन-मन की प्यास है।
लाज का लिफाफा ... वाह
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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