शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

नेह का उजास


अपनों के संगम  में ,
नेह का उजास  है .
मन  में उद्गारों  का ,
दहका पलास  है .
   साँसों  के सरगम  पर ,
   भौरों  का ज्वार है .
   यौवन  के आँगन  में ,
   खिलती कचनार है .
तन  में उफनती सी ,
नदी का हुलास  है . 
   धरती के बिछौने पर ,
   सोया मृगछौना है .
   उमगे सुंदरवन  में ,
   सुरभित  हर कोना है .
सुध-बुध  के खोने में ,
मकरन्दी आस  है .
   धरती पर बिछी हुई ,
   बहकी चंदनिया है .
   तारों की छेड़छाड़ ,
   करती रंगरलियाँ हैं  .
चंपा के फूल  खिले ,
भौंरा उदास  है।
   आँखों की शोभा ज्यों ,
   कटी हुई अमिया है .
   नाक  नक्स सुतवा सी ,
   कहती पैजनिया है .
लाज  के  लिफ़ाफ़े में ,
तन-मन  की प्यास  है।

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