अब गुलाबों के गए दिन
नागफनियाँ राज करती.
कंटकों का आवरण ले,
मौन से संवाद करती .
आँधियाँ हैं नफरतों की
प्रेम का सद्भाव कम है,
खो गया सुख का सवेरा
हर तरफ दुर्भाव तम है.
भूलकर आलोक के दिन
कालिमा फरियाद करती .|१|
टूटते सम्बन्ध प्रतिपल
मिट रही है मधुरिमा भी,
स्वार्थ का ही है सवेरा
खो रही है अरुणिमा भी .
गाँव के जर्जर मकानों-
की दशा प्रतिवाद करती.|२|
बृद्ध बरगद ने सुनाई
पीर अपनी कोयलों को,
पूछता हमको न कोई,
मान देते कीकरों को .
घोसलों से पंछियों की,
याचना संवाद करती .|३|
काग चुनते मोतियों को
हंस बेचारे मलिन हैं,
स्वेत परिधानी बतख हैं
उल्लुओं के रात-दिन है.
प्रीति की सम्भावना में,
मीन जल से वाद करती.|४|
© डॉ जयशंकर शुक्ल
नागफनियाँ राज करती.
कंटकों का आवरण ले,
मौन से संवाद करती .
आँधियाँ हैं नफरतों की
प्रेम का सद्भाव कम है,
खो गया सुख का सवेरा
हर तरफ दुर्भाव तम है.
भूलकर आलोक के दिन
कालिमा फरियाद करती .|१|
टूटते सम्बन्ध प्रतिपल
मिट रही है मधुरिमा भी,
स्वार्थ का ही है सवेरा
खो रही है अरुणिमा भी .
गाँव के जर्जर मकानों-
की दशा प्रतिवाद करती.|२|
बृद्ध बरगद ने सुनाई
पीर अपनी कोयलों को,
पूछता हमको न कोई,
मान देते कीकरों को .
घोसलों से पंछियों की,
याचना संवाद करती .|३|
काग चुनते मोतियों को
हंस बेचारे मलिन हैं,
स्वेत परिधानी बतख हैं
उल्लुओं के रात-दिन है.
प्रीति की सम्भावना में,
मीन जल से वाद करती.|४|
© डॉ जयशंकर शुक्ल
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