गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

मौन से संवाद

अब गुलाबों के गए दिन
नागफनियाँ राज करती.
कंटकों का आवरण ले,
मौन से संवाद करती .

आँधियाँ हैं नफरतों की
प्रेम का सद्भाव कम है,
खो गया सुख का सवेरा
हर तरफ दुर्भाव तम है.

भूलकर आलोक के दिन
कालिमा फरियाद करती .|१|

टूटते सम्बन्ध प्रतिपल
मिट रही है मधुरिमा भी,
स्वार्थ का ही है सवेरा
खो रही है अरुणिमा भी .

गाँव के जर्जर मकानों-
की दशा प्रतिवाद करती.|२|

बृद्ध बरगद ने सुनाई
पीर अपनी कोयलों को,
पूछता हमको न कोई,
मान देते कीकरों को .

घोसलों से पंछियों की,
याचना संवाद करती .|३|

काग चुनते मोतियों को
हंस बेचारे मलिन हैं,
स्वेत परिधानी बतख हैं
उल्लुओं के रात-दिन है.

प्रीति की सम्भावना में,
मीन जल से वाद करती.|४|

© डॉ जयशंकर शुक्ल

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