सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

धारावाहिक

५-दोहे
धारावाहिक ने लिखा ,
ऐसा एक पुरान .
जो नातों से खेलती ,
ऐसी नारि महान .|१|

दुख ने उम्र बढ़ा दिए ,
पिचके पिचके गाल .
धँसी हुईं आँखें कहें ,
माताफल के हाल .|२|

पल बीते अपनत्व के ,
बेगाने दिन- रात ,
टीवी के चैनल सगे ,
सगे नही अब तात .|३|

बातचीत के दिन गए ,
अब कटुता का राज .
लहूलुहान समाज को ,
ताके बरबस बाज़ .|४|
© डॉ जयशंकर शुक्ल

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