सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

सिंदूरी सपने

२-दोहे 
 अपने अपने घोसले , 
विहग गए नभ फाँद . 
सिंदूरी सपने लिए , 
मिला रात से चाँद .|१| 

चंदा की मनुहार पर , 
रजनी हुई निसार . 
उधर विरह मे लुट गया, 
चकवी का संसार .|२| 

 चंदा ऐसा लग रहा , 
ज्यों मुख ज्योति अपार . 
तारों के गहने पहन , 
रात करे अभिसार .|३| 

 खुले गगन की राह मे , 
बाज खड़ा मुस्तैद , 
त्रस्त पखेरू माँगता , 
फिर पिंजरे की कैद .|४| 

 © डॉ जयशंकर शुक्ल

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