गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

स्वार्थी युग हो गया है

स्वार्थी युग हो गया है
मर रही संवेदना
अब हलाकू घूमते हैं
मौत की टोली बना

हर तरफ संत्रास का
फैला हुआ है कोहरा
फूल लगते कागजी सब
सब्जियों पर रंग हरा
सच अनावृत्त हो रहा है
झूठ की गोली बना

झुग्गियों में फैलती
आँचल पसारे क्रंदना
मायवी दुनिया हुई
सब लुप्त होती भावना
सत्य भी मिलता बिचारा
फूस की खोली बना
 
अस्पतालों में चिकित्सक
कर रहे व्यापार हैं
कैश-लेश की ओट में
करते विविध व्यभिचार हैं
पीड़ितों से लूटते ये
द्रव्य को झोली बना

राजपथ अब हो गये हैं
मौत की सूनी डगर
जनपथों पर घूमती है
काल की पैनी नज़र
दौड़ चूहों की निकलती
खून की होली मना ।

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