बुधवार, 2 मई 2018

दोहे


अपने अपने घोसले ,
विहग गए नभ फाँद .
सिंदूरी सपने लिए ,
मिला रात से चाँद .|१|

चंदा की मनुहार पर ,
रजनी हुई निसार .
उधर विरह मे लुट गया,
चकवी का संसार .|२|

चंदा ऐसा लग रहा ,
ज्यों मुख ज्योति अपार .
तारों के गहने पहन ,
रात करे अभिसार .|३|

खुले गगन की राह मे ,
बाज खड़ा मुस्तैद ,
त्रस्त पखेरू माँगता ,
फिर पिंजरे की कैद .|४|

   © डॉ जयशंकर शुक्ल

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