शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

टूट गई

टूट गई जो एक बार तो ,
नींद नहीं आई दोबारा .
   जेहन में किस्तें बैठी हैं ,
   घर की, मन की औ' जीवन की .
   ब्याज बड़ा, पूँजी छोटी है ,
   जीवन रूपी मुक्त गगन की .
नया माह आते ही आती ,
कुदरत की काई दोबारा .
    झंझावाती शाम बताती ,
    दिन के अनुमानों की बातें .
    कामगार की प्रत्याशा को ,
    छेंड़ रही तानों की बातें .
नए सवेरे की आशा में ,
हसरत-सी छाई दोबारा .
     जिद कर करक बच्चा हारा,
     नई साइकिल नज़र न आई .
     आम आदमी के जीवन में ,
     मँहगाई ने सेंध लगाई .
कीमत चीजों की सुन सुनकर,
सुरसा याद आई दोबारा .

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